Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

वो दिन

कैसे भूलूँ मैं उन्हें यादों से ना जाये वो दिन ,
कैसे बिसराऊँ उन्हें दिल में समाये हैं वो दिन

एक एक पल तो सजा है , दिल के दरवाजों पे यूँ
जैसे दिवाली के दीपक जगमगाए हैं वो दिन

भीड़ में तो फिर कभी खो जाते बच्चों की तरह
पर अकेले में हमें छाती लगाये हैं वो दिन

कितना रीता सा मैं हो जाऊँगा गर ये ना मिले
मेरे घर आते रहेंगे बिन बुलाये से वो दिन

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